गुरुवार, 22 नवंबर 2007

क्या आप अपने काम से खुश हैं ?

बडा ही रोचक सवाल है यह कभी फ़ुरसत मिले तो खुद से पूछ कर देखिये . मेरा अनुमान है अधिकतर लोगो क जवाब या तो ५०-५० या फ़िर पता नही होगा. ना पूरी तरह से हां ना पूरी तरह से ना . क्या करे मजबूरी है अगर ना किया तो अगला सवाल मुंह बाये खडा हो जायेगा . फ़िर आप ये काम कर ही क्यो रहे है ? अगर हां किया तो भी सवाल तो नही पर अपके जवाब पर एक प्रश्न्चिन्ह लग जायेगा कि खुश है तो हर दूसरे दिन काम से लौटने के बाद मूड क्यो आफ़ रहता है? या फ़िर अक्सर ये क्यु कहते रहते हो कि यार इससे अच्छा तो कोइ और काम कर लेता. वो क्या है ना कि ये कुछ ऐसे जुमले है जो चहे अनचाहे जुबान पर आ ही जाते हैं. और अये भी क्यु ना आखिर आज तक कोइ भी ऐसा आफ़िस बना ही नही हैं, जहा काम करने वाले लोग हर दिन खुश रह सके. सबकी अपनी अपनी परेशानियां है, कोइ अपनी प्रोफ़ाइल से खुश नही है, कोइ किसी की तरक्की से खुश नही है. कोइ महौल से खुश नही है, तो कोइ तन्ख्वाह से खुश नही है. लेकिन चमत्कार देखिये इतना सब होने के बाद भी लोग काम किये जा रहे है . अब जरा एक नजर डालते है .. इस असंतुष्टि के कारणो पर...
१. जो सबसे महत्व्पूर्न वजह है वह यह है कि अक्सर हम जिस काम कि शुरुआत करते है वह पहले तो अपनी नवीनता और हमारी पसंद होने के कारण अच्छा लगता है . लेकिन वक्त के साथ वह अपना चार्म खोने लगता है.रोज का वही काम वही फ़ाइले वही लोग. अरे भाइ आप शोले भी दस बार देखेगे तो ग्यारह्वी बार पूरे ३ घण्टे बैथ कर नही देखना चाहेगे बल्कि बस अपने पसंदीदी सीन ही देखेगे.
२. कुछ लोग इसलिये अनचाहा काम करते है क्योकि वे कुछ और करने का जोखिम नही उठाना चाहते. उनके लिये जो है जैसा है वही बहुत है वाला जीवन दर्शन लागू होता है.
३. आर्थिक सुरक्शा- सबसे अधिक मात्रा मे पाया जाने वाला कारण यही है.इसका ग्रफ आज भी y-axis के पैरल है. आखिर जीवन की गाडी खीचने के लिये ईधन भी तो चाहिये और उसके लिये जेब का गर्म होना बाकी किसी भी चीज से ज्यादा मायने रखता है.
४. पढाइ लिखाइ के बाद कई बार लोग असमंजस मे पड जाते है कि करे तो क्या करे.जब कुछ सुझाई नही देता तो अपने आसपास देखना शुरू करते है. और पाते है कि उनके मित्र तो [इस]काम मे बडी तरक्की पा रहे है तो क्यो ना चलो हम भी [यह]काम कर ले.
५. सुझाव - यह एक ऐसी चीज है जो बिना मांगे और हर विषय पर मुफ़्त मिलती है.क्या घर वाले दादा जी हो.दूर वाले मौसा जी.या पडोस के मिश्रा जी. आपके लिये क्या अच्छा होगा यह उनसे बेहतर भला कौन जान सकता है. तो बेटा यह कर लो बहुत काम अयेगा. पर आने वाला कल किसने देखा है.लोग भी यही सोचते है कि यार ऐसे हाथ मे हाथ रखकर बैठने से तो अच्छा है कि यही कर लिया जाये. और जुट जाते है.

इसलिये दोस्तो अगर आप भी इनमे से किसी का शिकार हो तो एक काम करिये.जो भी खाली समय मिले उसमे किसी दिन कापी पेन लेके बैठिये और याद करिये कुछ ऐसी चीजे जिन्हे आप कभी अपना पैशन मानते थे.लेकिन उपरोक्त मे से एक वजह के चलते कभी उस पर ध्यान नही दे पाये.उसे करना शुरू करिये . बात मानिये आप अपने काम को तो नही बदल पायेगे लेकिन हा उसे बेहतर ढंग से जरूर कर पायेगे. एक समय सीमा निर्धारित करिये और फ़िर देखियेगा हर दिन आप उसका बेसब्री से इन्तजार करेगे. और इन अंतराल मे आप कुछ भी करेगे उसमे एक नयी ऊजा का अनुभव पायेगे.यह एक प्राक्रतिक श्रोत है बस फ़र्क इतना है कि हम इस पर पूरे मन से कभी विश्वास नही कर पाते.क्योकि इतने दिनो तक अनचाहे काम की मार सहने के बाद यह सब स्वप्न सा जान पड़्ता है. मन कुछ नया करने को तैयार ही नही हो पाता. मन की बात छोडिये एक बार ही सही स्वपन से नाता जोडिये.

[*अगर कोइ और वजह आपके पास है तो क्रपया उसे यहा हमारे अन्य पाठक मित्रो के साथ बांटिये.]

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