मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

मीडिया और शोषण - PART 2

अब बढते हैं आगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो हम दंग रह गये. मीडिया क्या है ? उसका क्या काम है ?क्या तौर तरीके हैं ? इन सबके बारे मे यु तो कालेज मे ही काफ़ी पता चल गया था. इसलिये इस बात कि तो हमने कोइ उम्मीद ही नही कि थी कि जते ही हमे हमारी पसंद की चीज दे दी जायेगी. बस यही था कि जो भी मिलेगा उसे जीजान से करेगें. और सथ मे आस्पास के माहौल को देखेगे जानेगे.सो हम्ने वही किया.रनडाउन दिया गया हफ़्ते भर मे सीख लिया.अब क्या नयी मशीन आयी थी वास्प 3D . अब भाई इंटर्न होने के नाते हमे ही सीखनी थी सो हमने सीख ली.हा ये और बात है कि हमारी कंप्युटर मे जो रुचि बचपन से थी उसने हमारी मदद की. और पिछ्ले कै सालो से घर मे इस य़ंत्र की जीभर कर जो चीड फ़ाड की थी उसके चलते इसकी रग रग से वकिफ़ थे.

कुल मिलाकर हमने सीख लिया. और बस लग गये काम मे नया काम था मन लगाकर लिया.और करते गये.फ़िर एक दिन ध्यान आया कि यार कर क्या रहे हैं ऐसे तो कोइ पूछ ही नहे रहा है कि और भी कुछ करना है कि नही. आखिर कब तक खबरे ब्रेक करते रहेगे. इस दौरान बाकी लोगो से मिलने का मौका मिला उनका काम देखने को मिला.और फ़िर लगा कि यार अगर हमे मौका मिला तो इनसे तो बेहतर ही करेगे.किसी की बुराइ नही कर रहा लेकिन हा कभी कभी अफ़सोस भी हुआ कुछ लोगो को देख्कर जिन्हे हिंदी भी ढंग से नही आती वे लोग भी हमसे बेहतर काम कर रहे थे. और यह सब देख्कर हम पहले तो इस उम्मीद मे थे कि आज नही कल हमे भी अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा.पर नही २ महीने बाद पता चला आप्को इसी सीट पर फ़िक्स किया जा रहा है क्योकि आप काम ठीक कर रहे हैं.

ये लो .. अब इसका क्या मतलब हुआ.हम काम कर रहे हैं क्योकि हमे दिया गया वो हमारी जिम्मेदारी थी .हमने पूरी की.लेकिन ये क्या कि जो हम चाहते है उसके बारे मे एक बार पूछा भी नही गया.आप १० घंते काम कराते हो ठीक है पर इसका मतलब ये नही की आप जो चाहो सिर्फ़ वही हम करे.फ़िर पिछ्ले तीन साल से जो झक मार रहे थे उसका क्या? जो इतना स्पेस्लाइजेशन किया वो तो गया बिन में. हद तो तब हो गयी जब अपने ही हेड से अपनी बात कहने गये तो जवाब मिला . इस तरह बात नहे करते कि मेरा काम बदल दो अन्यथा मै आप्का संस्थान छोड्ना चाहुगा.भाई हम तो सीरियस थे . और जो दिल मे था बडे ही स्पष्ट शब्दो मे आप से कह दिया.आप भी एक शब्द मे कह देते हा या ना. पर आप कुर्सी पर है इस्लिये होथो पर उगली रख्कर कह सकते है कि १ हफ़्ते बाद आना तब बात करेगे.

आखिर क्यु ? एक तो पिछ्ले २ महीने से जो भी काम दिया गया हमने उसे अच्छे से किया. आप्को कभी भी उगले उठाने का मौका नही दिया. और आज जब आपसे कुछ कहना चाहा तो एक हफ़्ते बाद आना. वाह रे मीडिया पुरुष. तुम मुझे उस सीट पर जाब देने को तैयार जो लेकिन मेरा काम नही बदलोगे क्योकि इससे तुम्हारे सम्मान को ठोकर लगती है कि मै तुम्हातरे दिए काम को अस्वीकार कैसे कर सकत हु. और मै जो तुम्हे अश्सावसन देता हू कि मुझे मेरे मन का काम दो मै तुम्हारे बाकी लोगो से बेहतर करके दिखाउगा तो तुम्हे वह स्वीकार नही. क्योकि मीडिया मे 'तुम जाओगे तो हजारो पडे है ' इसलिये सिर्फ़ तुम बोलोगे और हजारो लोग सिर्फ़ सुनेगे.

फ़्रीडम आफ़ एक्स्प्रेशन के नाम पर हमने मीडिया मे कदम रखा था यहा तो हमारी ही एक्स्प्रेशन को ही लकवा मार गया. आप जानते क्या हो अभी हमारे बारे मे इंटर्न ही तो है उन्हे मौका तो दो खुद को साबित करने का. मैने तो खुद को साबित करना चाहा जो आपने दिया मैने किया अब जो मै चाहता हू वो मुझे मिलना चाहिये. सच तो यही कहता है लेकिन यहा तो बात हे निराली है चुकि आप अभी नये हैं इसलिये भले ही कितना अच्छा काम करे आप को काम नही मिलेगा. बात यहे खत्म नही होती. कुछ चीजे और भी है जिन्हे मीडिया मे उतरने से पहले मैने सुना था उन्से भी इस दौरान रूबरू होने का मौका मिला. वो हम बात करेगे अगली बार..continue